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फ़रहान अख़्तर ने लगा दी आग, इमोशन और एक्शन का ज़बरदस्त तूफ़ान,,पड़े पूरी खबर 

 

महाराष्ट्र बॉक्सिंग एसोसिएशन के सबसे नामचीन कोच नाना प्रभु और डोंगरी के सड़कछाप गुंडे अज्जू भाई के बीच यह संवाद मान-सम्मान की परिभाषा को बड़े आसान शब्दों में गढ़ता हैकहानी के केंद्र में मुख्य रूप से यही दो किरदार अज्जू भाई यानी अज़ीज़ अली (फ़रहान अख़्तर) और नारायण प्रभु (परेश रावल) हैं। इन दोनों के ज़रिए निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने कभी खुलकर तो कभी इशारों में बहुत कुछ कह दिया है। अज्जू भाई डोंगरी इलाक़े का गुंडा है, जो जाफ़र भाई (विजय राज़) के लिए काम करता है। अज्जू बॉक्सिंग चैम्पियन बनकर सच्चा सम्मान हासिल करना चाहता है।

इसमें उसकी प्रेरणा इलाक़े के चैरिटी चैरिटी अस्पताल में काम करने वाली डॉ. अनन्या (मृणाल ठाकुर) बनती है।अज्जू महाराष्ट्र बॉक्सिंग एसोसिएशन के कोच नाना प्रभु के पास जाता है। शुरुआती हिचक के बाद नाना उसे ट्रेन करने के लिए तैयार हो जाता है। अज्जू स्टेट चैम्पियनशिप जीत लेता है। मगर, जब नाना को पता चलता है कि अज्जू उसकी ही बेटी से प्यार करता है और शादी करना चाहता है, वो उसे धक्के और गालियां देकर भगा देता है। अनन्या अज्जू के पास आ जाती है। इस बीच पैसों की तंगी दूर करने के लिए अज्जू नेशनल चैम्पियनशिप में फिक्सिंग कर लेता और हार जाता है।

यह बात खुल जाती है और अज्जू पर पांच साल का बैन लग जाता है। अज्जू बॉक्सिंग छोड़कर ट्रैवलिंग कंपनी शुरू कर चुका होता है। उधर, उस पर लगा बैन हट जाता है। अनन्या चाहती है कि अज्जू वापस बॉक्सिंग करे और चैम्पियनशिप जीतकर फिक्सिंग के दाग़ को धोए। पर अज्जू मना कर देता है... पर अज्जू को नहीं मालूम होता कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तेहान बाक़ी है। उसकी ज़िंदगी फिर उसी सवाल पर आकर ठहर जाती है... इज़्ज़त क्या होती है? स्टेट बॉक्सिंग चैम्पियन और बाद में नेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन के अधिकारी धर्मेश पाटिल के नेगेटिल रोल में दर्शन कुमार कहीं कमज़ोर नहीं पड़े हैं। हालांकि, उनका रोल छोटा ही है। फ़िल्म की अच्छी बात यह है कि जिस समसामयिक बहस को यह लेकर चलती है, उसमें किसी किरदार को ग़ैरज़रूरी रूप से नकारात्मक नहीं दिखाया गया है।