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जिंदगी को नए नजरिये से देखना सिखाती है Irrfan Khan की ये 5 फिल्में, Video में जानिए इन फिल्मों की कहानी 

 
जिंदगी को नए नजरिये से देखना सिखाती है Irrfan Khan की ये 5 फिल्में, Video में जानिए इन फिल्मों की कहानी 

इरफान खान अब हमारे बीच नहीं रहे और इस बात पर यकीन करना आज भी मुश्किल है। वे 53 साल की उम्र में हमें छोड़कर चले गए। लेकिन वे अपनी फिल्मों का एक पूरा पिटारा हमारे लिए छोड़ गए हैं, ताकि हम उन्हें इन फिल्मों के जरिए याद रख सकें। हम कह सकते हैं कि हम उस दौर में पैदा हुए हैं, जिसमें इरफान पैदा हुए। वही इरफान, जो अपनी सादगी, सधे हुए अभिनय और किरदार में ढल जाने के हुनर ​​से लोगों का दिल चुरा लेते थे। वही इरफान, जो क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें बेमिसाल एक्टर बना दिया। ऐसा एक्टर जिसकी कोई बराबरी नहीं।'


हासिल, 2003
साल 2003 में रिलीज हुई इस फिल्म में इरफान निगेटिव रोल में थे। छात्र नेता के तौर पर उनके किरदार 'रणविजय' को लोग आज भी याद करते हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति पर आधारित इस फिल्म के एक सीन में जब वे मुख्यमंत्री से मिलने जाते हैं और सीएम का एक प्रतिनिधि उनसे कहता है, 'अभी मिलना मुश्किल है, कल आना।' फिर जिस तरह से इरफ़ान कहते हैं, "भाई साहब, पार्टी चल रही है, लेकिन हम आम लोग नहीं हैं. हम छात्र नेता हैं. अगर आप सीटी बजाएंगे तो दस हज़ार लड़के इकट्ठा होकर हमारे इर्द-गिर्द बैठ जाएंगे. फिर आपको मंत्री जी से गाली मिलेगी", इस डायलॉग ने दिल जीत लिया.

मकबूल 2003
विशाल भारद्वाज द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में इरफ़ान मुख्य भूमिका में थे. फ़िल्म की कहानी उनके यानी मकबूल के इर्द-गिर्द घूमती है. मकबूल अंडरवर्ल्ड डॉन अब्बा जी का एक वफ़ादार सिपाही है, जिसे अब्बा जी की मालकिन निम्मी से प्यार हो जाता है. इसी प्यार के चलते वो तब्बू के कहने पर अपने मालिक अब्बा जी की हत्या कर देता है. कुल मिलाकर फ़िल्म की कहानी दिलचस्प है, जो आपको बांधे रखती है.

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लाइफ़ ऑफ़ पाई (2012)
हॉलीवुड की इस सफल फ़िल्म में इरफ़ान एक लेखक को अपनी ज़िंदगी की कहानी बताते नज़र आ सकते हैं. इरफ़ान का बचपन कैसा था, वो कैसे बड़े हुए. इरफान इन सब के बारे में बात करते हैं। इस क्रम में वे अपने जीवन की एक घटना का जिक्र करते हैं जिसमें उन्होंने एक शेर के साथ नाव पर काफी समय बिताया था। फिल्म में इरफान बताते हैं कि भूखे शेर के सामने खुद भूखे रहकर बैठना आसान नहीं होता। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे आप मौत के बहुत करीब बैठे हों। इस फिल्म को ताइवान के डायरेक्टर एंग ली ने डायरेक्ट किया है, जिसे काफी सराहा गया।

द लंचबॉक्स (2013)
'द लंचबॉक्स' एक बेहतरीन फिल्म है। इस फिल्म में इरफान ने 55-60 साल के क्लर्क साजन फर्नांडिस का किरदार निभाया है, जिसका लंच बॉक्स दूसरी महिला इला के पति के लंच बॉक्स से बदल जाता है। साजन को खाना इतना पसंद आता है कि वह बॉक्स में एक थैंक यू नोट छोड़ जाता है। इसके बाद शुरू होता है खतों का आदान-प्रदान, जो दोनों के बीच एक प्रेम कहानी को जन्म देता है। इस फिल्म को भारत के बाहर भी काफी सराहा गया।

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हिंदी मीडियम, 2017
इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे भारत में गलत अंग्रेजी बोलने पर व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर सवाल उठाए जाते हैं। इतना ही नहीं, अगर हिंदी मीडियम में पढ़े-लिखे माता-पिता अपने बच्चे का एडमिशन अंग्रेजी मीडियम स्कूल में करवाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मीता (सबा कमर) और उनके पति राज बत्रा यानी इरफान खान इस फिल्म के जरिए लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहे। वे यह बताने में भी कामयाब रहे कि कोई भी भाषा 'क्लासी' या 'सेकेंड रेट' नहीं होती। भाषा आखिर एक भाषा ही होती है और उसके आधार पर कोई खास राय बनाना सही नहीं है।

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