भारत की आजादी वाले दिन हुआ था Ustad Aamir Khan का जन्म, अपने शास्त्रीय संगीत से बांध देते थे समां

भारत में शास्त्रीय संगीत के कई उस्ताद हुए हैं, जिन्होंने अपने संगीत कौशल से पूरी दुनिया में खूब नाम कमाया है। उनमें से एक थे उस्ताद अमीर खान। भारत में शास्त्रीय संगीत उस्ताद अमीर खान के समय से मौजूद था। गीत, संगीत, ताने-बाने और गजलें बच्चे-बच्चे की जुबान पर रहते थे। शास्त्रीय संगीत की समझ से उन्हें कोई नहीं रोक सका। भारत के शास्त्रीय संगीत को देश-दुनिया में फैलाने वाले उस्ताद आमिर खान का आज जन्मदिन है। आइए इस मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें।
उस्ताद अमीर खान का जन्म 15 अगस्त 1912 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनका जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहमीर खान था, जो भिंडी बाजार घराने के सारंगी वादक थे। वह इंदौर के होल्कर राजघराने में खेला करते थे। उनके दादा चंगे खान बहादुर शाह जफर के दरबार में एक गायक थे। जब अमीर अली खान केवल नौ वर्ष के थे, तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई। अमीर और उनके छोटे भाई बशीर अपने पिता से मैंडोलिन की शिक्षा लेते हुए बड़े हुए, लेकिन जल्द ही उनके पिता को एहसास हुआ कि अमीर का झुकाव वादन से ज्यादा गायन की ओर है, इसलिए उन्होंने अमीर अली को और अधिक गायन की शिक्षा देनी शुरू कर दी। खुद इस क्षेत्र में होने के कारण आमिर अली को सही प्रशिक्षण मिलना शुरू हुआ और वह अपने हुनर को मजबूत करते गये।
आमिर खान ने अपने एक मामा से तबला भी सीखा। अपने पिता के सुझाव पर, अमीर अली 1936 में मध्य प्रदेश के रायगढ़ संस्थान में महाराज चक्रधर सिंह के साथ शामिल हो गये, लेकिन वहाँ केवल एक वर्ष तक ही रहे। उनके पिता की मृत्यु 1937 में हो गई। वैसे, आमिर खान 1934 में ही बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए और स्टेज पर परफॉर्म करना शुरू कर दिया। इस दौरान वे कुछ वर्षों तक दिल्ली में और कुछ वर्षों तक कलकत्ता (अब कोलकाता) में भी रहे, लेकिन देश के विभाजन के बाद वे स्थायी रूप से बंबई में बस गये।
आमिर खान बाद में ऑल इंडिया रेडियो, इंदौर में सारंगी वादक बन गये। फिल्म संगीत में भी उस्ताद अमीर खान का योगदान महत्वपूर्ण था। उन्होंने 'बैजू बावरा', 'शबाब', 'झनक झनक पायल बाजे', 'रागिनी' और 'गूंज उठी शहनाई' जैसी फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा था। उनका गायन बंगाली फिल्म 'क्षुधितो पाषाण' में भी सुना गया था। उनकी गायकी और गानों से पूरी महफिल मंत्रमुग्ध हो गई. उन्हें गाने का एक अलग ही शौक था. इंदौर की उनकी गायकी को शास्त्रीय संगीत का पहला अंतर्मुखी घराना कहा जाता है। इसी कारण उन्हें 'तराने का तानसेन' भी कहा जाता था। 13 फरवरी 1974 को एक सड़क दुर्घटना में उस्ताद अमीर खान साहब की मृत्यु हो गई।