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Balika Vadhu के डायरेक्टर पर उठ रहे है सवाल,निर्देशक की सोच को बताया गलत 

 
Balika Vadhu के डायरेक्टर पर उठ रहे है सवाल,निर्देशक की सोच को बताया गलत 

कहते हैं प्यार की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन शादी होती है और होनी भी चाहिए। बाल विवाह सही है या गलत, इस मुद्दे पर सदियों से चर्चा और बहस होती रही है। लेकिन अब स्थिति बदल गई है और सरकार ने शादी के लिए एक सही उम्र तय कर दी है। लेकिन एक समय था जब बाल विवाह को बच्चों के भविष्य के लिए सबसे अच्छा फैसला माना जाता था। इस प्रथा को रोकने के लिए कई लोगों ने आगे आकर लंबी लड़ाई लड़ी है। छोटे पर्दे का सीरियल 'बालिका वधू' तो सभी को याद होगा। साल 2008 में आए इस सीरियल को घर-घर में पसंद किया गया था और शो की कहानी ने लोगों के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी। 

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यकीन मानिए लोगों को इस सीरियल से इतना लगाव था कि अगर शो की आनंदी पर संकट आता तो घर बैठे लोगों को भी बुरा लगता। इसकी कहानी के जरिए समाज को संदेश देने की कोशिश की गई है। प्रत्येक एपिसोड के अंत के बाद एक सामाजिक संदेश दिया गया। जिसे शुद्ध वचनों से तैयार किया गया था। इस कहानी ने सबको बता दिया कि बाल विवाह एक बुरा विचार है। यह एक ऐसी प्रथा थी जो कई बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर देती थी। इस प्रथा के चलते कितनी ही नाबालिग लड़कियों की जान भी चली गई। बाल विवाह के माध्यम से लड़कियों को जीवन के अंधकार की ओर धकेला जाता था। यह हमेशा एक आपत्तिजनक विचार था।

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लेकिन एक तरफ जहां कई लोगों को यह प्रथा गलत लगती है वहीं दूसरी तरफ फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार की सोच थोड़ी अलग है। उन्होंने 1976 में बालिका वधू फिल्म बनाई थी। इस फिल्म को काफी पसंद किया गया था क्योंकि इसकी कहानी सच्चाई से बिल्कुल परे थी। यह एक ऐसी कहानी थी जिसने दिखाया कि बाल विवाह एक सुंदर प्रथा है। जहां दो टीनएज कपल अपनी शादी को एंजॉय कर रहे हैं। दोनों एक दूसरे में इस कदर खोए हुए हैं कि उन्हें खुद का भी होश नहीं है। एक तरफ जहां लड़के को पढ़ाई करते दिखाया गया है वहीं दूसरी तरफ लड़की उसकी पत्नी होने के सारे फर्ज निभाती नजर आ रही है। 

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इस कहानी को देखकर लगता है कि निर्देशक यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि एक सफल शादी का राज बच्चों की कम उम्र में शादी कर देना है ताकि उनके पास कोई और विकल्प न बचे। बचपन का प्यार तो समझ में आता है, लेकिन बचपन की शादी सवाल खड़े करती है। इसी तरह संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत में दिखाया गया है कि जौहर की प्रथा गर्व की बात हुआ करती थी। इस प्रथा को बंद करने के बजाय इस फिल्म की कहानी को इस तरह दिखाया गया कि जोहर को मना लिया जाए। कठिन समय हो तो स्त्रियों को जौहर करना चाहिए।

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